1500 से 1600 रूपए का एक चक्‍कर का टोल पड जाता है : transporter-lakha-singh

लख्‍खा सिंह जी लालडू के पास चण्‍डीगढ के रहने वाले है । इन्‍होंने सन 1994  में ट्रांसपोर्टस के बिजनेस की शुरूआत की थी। पहले तो खुद गाडी चलाते थे। इनका कहना है कि घर से गाडी लेकर जाते थे तो जेब तें 13000 रूपए डालकर जाते थे गाडी का खर्चा करके 2000 रूपए फिर भी बच जाते थे । लेकिन आज यह बचत नही है अब कुछ बचता नही है। उनका कहना है कि आज ट्रांसपोर्टस बिजनेस के ऑनलाइन होने से ट्रांसपोट्रस लाइन को काफी फायदा हो रहा है। उन्‍होने बताया कि पंजाब में डेराबसी की सबसे बडी यूनियन थी वो आज भंग हो गई है यूनियन के भंग होने से इस लाइन को काफी नुकसान हुआ है। टोल टैक्‍स इतने बढ गए है कि टोल के बढने से इस लाइन को काफी नुकसान हो रहा है। आज एक गाडी का एक साल का खर्चा डेढ लाख से ऊपर का बैठता है। इनका कहना है कि आज ट्रांसपोर्टस लाइन में 1500 से 1600 रूपए का एक चक्‍कर का टोल पड जाता है।ट्रांसपोट्रर्स की अधिकतर कमाई तो टोल टैक्‍स में निकल जाती है। उन्‍होने कहा कि ई वे बिल का ट्रांसपोर्टस लाइन में आने से अब गाडी वाले का समय बच जाता है । अब बार्डर पर गाडी चैक करवाने में समय की बर्बादी नही होती है । गाडी जल्‍दी माल पहुंचाकर आ जाती है। इनका कहना है कि एक गाडी वाले को ओवरलोड करने से गाडी को नुकसान ही होता है। ओवरलोड भरने से गाडी वाले का नुकसान होता है। असली फायदा तो व्‍यपारी को होता है । व्‍यापारी अपने माल को ओवरलोड करवाने के चक्‍कर में गाडी में ओवरलोड डलवाते है।  इनका कहना है कि इस बिजनेस मे सबसे बडी दिक्‍कत तो यह आ रही है कि एक गाडी वाले का साल का खर्चा डेढ लाख रूपए है। और भाडे के रेट नही बढते है यूनियन के भंग होने से काम भी ठप हो रहा है।

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