ट्रांसपोर्टस देश की रीढ की हडडी: transporter-dilip

ट्रांसपोर्टस दिलीप जी गुजरात के अहमदाबाद के रहने वाले है। वे सन 2002 से ट्रासंपोर्ट में मार्केटिंग का काम कर रहे है। वे मार्केट में गाडियां लेकर लोड करवाने का काम करते है , उनकी खुद की कोई गाडी नही है।उन्‍हें इस लाइन का लंबा अनुभव है। उनका कहना है कि ट्रांसपोर्ट लाइन पूरी तरह इंडस्‍ट्री पर डिपेंड है। अगर इंडस्‍ट्री में उत्‍पादन होगा तोट्रांसपोर्ट को काम मिलता रहेगा। लेकिन पिछले कुछ समय से काम कम हो गया है। इसकी कुछ हद तक वजह जीएसटी भी है। इससे काम कम निकल रहा है। उनका मानना है कि आनलाइन सिस्‍टम से ट्रांसपोर्ट लाइन काे फायदा हो रहा है। हर काम आनलाइन होने लगा है। इससे समय तो बच ही रहा है। पैसे भी बच रहे है। आनलाइन माल मिलने से आधी टेंशन दूर हो गई है। अब तो घर बैठे आनलाइन माल ढूंढ सकते है। ई वे बिल ने ट्रांसपोर्ट का काफी समय बचा दिया है। इससे बार्डर बैरियर हट गए है और गाड़ी बिना रुके निकल जाती है। इससे ड्राइवर को भी रेस्‍ट करने का समय मिलने लगा है। उनका मानना है कि ट्रांसपोर्टलाइन में ट्रेंड ड्राइवर कम मिलते है। इससे थोड़ी दिक्‍कत आती है। ट्रांसपोर्ट लाइन में खर्चे बढ गए है। मार्केट में माल कम है डीजल के रेट ज्‍यादा है, भाडा कम मिलता है। डीजल का रेट 20 सालों में कई गुना बढ चुका है। लेकिन भाड़ा उतना नहीं बढ पाया है। उनका कहना है कि ट्रांसपोर्ट लाइन में यूनियन बहुत जरूरी है। अगर यूनियन होगी तो ट्रांसपोर्टस की सरकार भी सुेनगी। दिलीप जी अंडरलोड को ही सही मानते है। उनका कहना है कि सरकार को ध्‍यान  देना चाहिए ट्रांसपोर्टस पर,  क्‍योंकि ट्रांसपोर्टस देश की रीढ की हडडी है  । सरकार को इसके बारे में थोडा सोचना चाहिए।

 

 

 

 

 

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