जब हम रोड टैक्‍स दे रहे है तो टोल टैक्‍स क्‍यों सुदर्शन : transporter-sudershan

सुदर्शन जी पंजाब के डेराबस्‍सी के रहने वाले है । इन्‍होंने 20 ट्रकों के साथ ट्रासपोर्टस के काम की शुरूआत की थी । आज इनके पास खुद की 23 गाडियां है।  इनका कहना है कि इस समय ट्रांसपोर्टस का काम मंदा चल  रहा है। जब काम की शुरूआत की थी तब काम बढिया चल रहा था ट्रांसपोर्टस का, लेकिन जीएसटी लगने के बाद इस काम में मंदी आ गई है। इनका कहना है कि अब  गाडियों को माल नही मिल रहा है। इनका कहना है कि ट्रांसपोर्ट लाइन में डीजल और टैक्‍स के रेट में काफी बढोतरी हुई है। इनका कहना है कि पहले के मुकाबले ट्रांसपोर्टस लाइन में खर्च काफी बढ गए है। पहले भी खर्चे थे, लेकिन इतने ज्‍यादा नहीं थे। इस कारण अच्‍छी बचत हो जाती थी। अब तो टैक्‍स ही इतने ज्‍यादा है।उनका कहना है कि सरकार ट्रांसपोर्टस से एक तरह का टैक्‍स दो बार ले रही है। ट्रांसपोर्टर्स रोड टैक्‍स तो शुरू से दे रहे है। टोल टैक्‍स शुरू होने के बाद ट्रांंसपोर्टस से टोल टैक्‍स भी लिया जाने लगा। जब हम रोड टैक्‍स दे रहे है तो टोल टैक्‍स क्‍यों लिया जा रहा है। यह तो सरासर गलत है। उनका कहना है कि डीजल के रेट आए दिन बढ जाते है। लेकिन भाड़ा इस तरह नहीं बढता। साल दो साल में कभी भाड़ा बढता है। होना ये चाहिए कि डीजल के रेट बढने पर भाड़ा भी बढना चाहिए। सबसे अच्‍छा तो ये है कि भाड़ा पर किलेामीटर के हिसाब से हाेना चाहिए। उनका मानना है कि ओवरलोड से गाडी को नुकसान होता है गाडी को अंडरलोड चलाना ही बेस्‍ट है।  इनका सुझाव है कि भाडे के रेट इतने होने चाहिए की गाडी का खर्चा आराम से निकल सके। सरकार को खर्चो को ध्‍यान मे रख कर भाडे के रेट तय करने चाहिए ताकि काम करने पर गाडी की किश्‍ते आसानी से निकल सके और गाडी वाले का परेशनी कम झेलनी पडे।

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