गाडी वाले को माल लोडिंग और अंनलोडिग का खर्चा भी पडता है : transporter-rajan-bansal

राजन बंसल पंजाब के डेराबस्‍सी के रहने वाले है। इन्‍होंने दो गाडियों से ट्रांसपोर्टस बिजनेस की शुरूआत की थी। आज इनके पास खुद की चार गाडियों है। इनका कहना है कि ई वे बिल के आने से ट्रांसपोर्टस लाइन को यह फायदा हुआ है कि अब बार्डर पर गाडियों को पेपर बनवाने के लिए लाइनो में खडे नही होना पडता है। ई वे बिल के आने से काम सारा एक नंबर में हो गया है दो नंबर का काम खत्‍म हो गया है। ई वे बिल से समय की बचत हो जाती है , गाडी समय से माल लेकर पहुंच जाती है , अब गाडी वाले का समय बच जाता है। इनके हिसाब से तो गाडी को अंडरलोड चलाना सही है क्‍योंकि अंडरलोड गाडी चलाने से गाडी को नुकसान नही होता । इनका कहना है कि अब सरकार ने गाडियों में टन बढाकर गलत किया है। टन बढाने से तो गाडी वाले को तो नुकसान है भाडे के रेट मिलते नही और टन के बढने से तो व्‍यपारियों को फायदा है। गाडी वाले को तो भाडे का रेट पूरा नही मिलता है। इस बिजनेस मे सबसे बडी दिक्‍कत यह आ रही है कि मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र के बार्डर के पर पूरे पेपर होने के बावजूद भी 12000 आरटीओ वाले हर चक्‍कर का लेते है। डेराबसी से चन्‍नई जाते है जिसमें आठ बार्डर पडते है और हर बार्डर की फीस 700 रूपए अलग से लेते है हमें तो सबसे ज्‍यादा दिक्‍कत तो यहां पर आ रही है। भष्‍टाचार के बढने से देश का बहुत ही बुरा हाल है। गाडी वाले को माल लोडिंग और अंनलोडिग का खर्चा भी पडता है बल्‍कि जो खर्चा व्‍यपारी का होना चाहिए वो भी गाडी वाले को पड रहा है। इनका कहना है कि दिल्‍ली साईड गाडी लोडिंग और अनलोडिंग का खर्चा 800 से शुरू होकर 2500 आता है। आजकल इस काम में मंदी आ गई है। जहां चले जाते है माल नही मिलता है। इनका कहना  कि सारा काम सरकार के हाथ में है। टोल बढाना और कम करना सब सरकार के हाथ में है। सरकार चाहे तो मंदी में ट्रांसपोर्ट को टैक्‍स में राहत दे सकती है।

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